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महाजनो येन गतः स पन्थाः

तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः
नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां
महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥

tarko’pratiṣṭhaḥ śrutayo vibhinnāḥ
naiko munir yasya vacaḥ pramāṇam |
dharmasya tattvaṁ nihitaṁ guhāyāṁ
mahājano yena gataḥ sa panthāḥ ||

यह प्रसिद्ध श्लोक महाभारत (वनपर्व 313.117) से लिया गया है। इसका अर्थ अत्यंत गूढ़ है और दार्शनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी।

“Logic has no final foundation, the scriptures are many and diverse, and no single sage’s word can be taken as final authority. The truth of dharma lies hidden in the cave of the heart. Hence, the true path is that along which great souls have walked.”

सारांश (Explanation in Hindi):

  • केवल तर्क (logic) पर निर्भर होकर धर्म का निर्णय नहीं किया जा सकता, क्योंकि तर्क अस्थिर और व्यक्ति-विशेष पर आधारित होता है।

  • शास्त्र (scriptures) अनेक हैं और उनमें मतभेद भी हैं।

  • प्रत्येक ऋषि ने अपने अनुभव से कुछ कहा है, परन्तु किसी एक का कथन अंतिम सत्य नहीं हो सकता।

  • धर्म का वास्तविक तत्त्व हृदय की गहराई में, आत्मा की सूक्ष्म अनुभूति में ही प्रकट होता है।

  • इसलिए, जिस मार्ग पर महाजनों—महान आत्माओं—ने चलकर सत्य का साक्षात्कार किया है, वही वास्तविक धर्ममार्ग है।

पदच्छेद (शब्द विभाजन)

  • तर्कः अप्रतिष्ठः — तर्क (विचार-विमर्श) अस्थिर है, उसकी कोई अंतिम प्रतिष्ठा नहीं।

  • श्रुतयः विभिन्नाः — शास्त्र (श्रुतियाँ) अनेक प्रकार से भिन्न हैं।

  • न एकः मुनिः यस्य वचः प्रमाणम् — कोई एक मुनि (ऋषि) नहीं है जिसका कथन ही पूर्ण प्रमाण हो।

  • धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् — धर्म का तत्व (सत्य सार) गहन रहस्य में छिपा है।

  • महाजनः येन गतः स पन्थाः — जिस मार्ग पर महाजनों (महापुरुषों) ने गमन किया है, वही मार्ग श्रेष्ठ है।

भावार्थ (अर्थ)

धर्म का निर्णय केवल तर्क, शास्त्रों की विविध व्याख्याओं, या किसी एक ऋषि के मत से नहीं किया जा सकता।
धर्म का वास्तविक सार तो हृदय की गहराई (गुहा) में, अनुभव और आचरण में निहित है।
इसलिए, हमें महापुरुषों के आचरण और पथ को ही धर्म का मार्ग मानना चाहिए।

सरल हिन्दी में सारांश

“तर्क से धर्म की निश्चितता नहीं होती, शास्त्रों में मतभेद हैं, और कोई एक ऋषि अंतिम प्रमाण नहीं है।
धर्म का सच्चा अर्थ हृदय की गहराई में छिपा है — अतः वही मार्ग धर्म है जिस पर महान लोग चले हैं।”

यह श्लोक युधिष्ठिर और यक्ष संवाद में आता है।
जब यक्ष युधिष्ठिर से पूछते हैं — “धर्म का क्या स्वरूप है?”
तब युधिष्ठिर इस उत्तर के माध्यम से बताते हैं कि सच्चा धर्म अनुभव और महाजनों के आचरण से जाना जाता है, केवल ग्रंथों या तर्क से नहीं।