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अद्वैत वेदांत क्या है? What is Advaita Vedanta?

अद्वैत वेदांत क्या है? What is Advaita Vedanta?

अद्वैत वेदांत एक प्रमुख भारतीय दार्शनिक प्रणाली है, जिसे आचार्य शंकर ने विकसित किया। यह दर्शन अद्वैत (अर्थात “अनेकता का अभाव”) के सिद्धांत पर आधारित है, जो यह मानता है कि ब्रह्म (सर्वोच्च वास्तविकता) और जीव (आत्मा) एक ही हैं।

मुख्य सिद्धांत

  1. ब्रह्म और जगत: अद्वैत वेदांत के अनुसार, केवल ब्रह्म ही सत्य है और जगत एक मिथ्या (असत्य) है। इसका अर्थ है कि जो कुछ भी हम अनुभव करते हैं, वह केवल ब्रह्म की माया है।
  2. अज्ञान और ज्ञान: जीवों का ब्रह्म का अनुभव न कर पाने का कारण अज्ञान या अविद्या है। जब यह अज्ञान समाप्त होता है, तब जीव ब्रह्म के साथ एकता का अनुभव करता है।
  3. तत्त्वमसि: यह उपनिषद का एक प्रसिद्ध सूत्र है, जिसका अर्थ है “वह तू है”, जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्पष्ट करता है कि आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।
  4. अनुभव पर आधारित: अद्वैतवाद का तात्पर्य यह है कि हमारे अनुभव हमेशा सत्य नहीं होते हैं। इस दृष्टिकोण से, वास्तविकता को समझने के लिए गहन ध्यान और विवेक की आवश्यकता होती है।

इतिहास और प्रभाव

  • अद्वैत वेदांत का विकास आचार्य शंकर द्वारा 8वीं शताब्दी में हुआ। उन्होंने इसे पुनर्जीवित किया और इसे भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
  • इस दर्शन को भारत में कई विचारकों ने अपनाया, जैसे स्वामी विवेकानंद और श्री अरविंद घोष।

अद्वैत वेदांत न केवल एक दार्शनिक विचारधारा है, बल्कि यह जीवन जीने की एक पद्धति भी प्रस्तुत करता है, जो हमें आत्मा और ब्रह्म के बीच की एकता को समझने में मदद करती है। यह दर्शन हमें सिखाता है कि असली मुक्ति तब संभव है जब हम अपने अज्ञान को दूर कर लें और ब्रह्म की वास्तविकता को पहचान लें।

अद्वैत वेदांत भारतीय दर्शन का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका मुख्य उद्देश्य आत्मा और ब्रह्म की एकता को समझाना है। “अद्वैत” का शाब्दिक अर्थ है “अद्वितीय” या “द्वैतहीन”, यानी केवल एक ही परम सत्य है, जो कि “ब्रह्म” है। इसका तात्पर्य यह है कि ब्रह्म ही एकमात्र वास्तविकता है और जीवात्मा तथा जगत उसी ब्रह्म के ही विभिन्न रूप हैं।

अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य माने जाते हैं, जिन्होंने 8वीं शताब्दी में इस विचारधारा को विस्तार दिया। उनके अनुसार:

  1. ब्रह्म सत्य है – ब्रह्म, जो कि निराकार, निर्गुण, अनंत और अपरिवर्तनीय है, वह ही एकमात्र सत्य है।
  2. जगत मिथ्या है – जो संसार हमें दिखाई देता है, वह अस्थायी और नश्वर है। इसे केवल “माया” के प्रभाव से देखा जाता है। इसीलिए इसे मिथ्या कहा गया है।
  3. जीव-ब्रह्म की एकता – जीवात्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। जीव का सत्य स्वरूप ब्रह्म ही है। अद्वैत वेदांत के अनुसार, आत्मा (जीव) और ब्रह्म (परमात्मा) एक ही हैं, लेकिन अज्ञान (अविद्या) के कारण यह भेदभाव महसूस होता है।

अद्वैत वेदांत के प्रमुख सिद्धांत:

  • माया और अविद्या: अद्वैत वेदांत में माया और अविद्या की भूमिका महत्वपूर्ण है। माया के कारण ही आत्मा और परमात्मा के बीच भेदभाव महसूस होता है। माया ही संसार के भ्रम का कारण है।
  • ज्ञान और मोक्ष: अद्वैत वेदांत के अनुसार, आत्मज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है। जब व्यक्ति यह जान लेता है कि वह स्वयं ब्रह्म है और माया के प्रभाव से मुक्त हो जाता है, तब वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
  • निर्गुण ब्रह्म: अद्वैत वेदांत में ब्रह्म को निराकार, निर्गुण, और अनंत माना गया है। वह किसी भी गुण, रूप, या विशेषता से परे है।

अद्वैत वेदांत का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान के माध्यम से आत्मा और ब्रह्म की एकता का अनुभव करना और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाना है। इसके अनुसार, हर व्यक्ति के भीतर ब्रह्म का अंश है, और आत्म-साक्षात्कार से व्यक्ति अपनी सच्ची प्रकृति को जान सकता है, जो कि परम सत्य, चिर आनंद और असीम शांति है।

अद्वैत वेदांत हिंदू दर्शन की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘द्वैत से रहित’ या ‘अद्वैत’, जो इस दर्शन के मूल सिद्धांत को स्पष्ट करता है। इस दर्शन के अनुसार, ब्रह्मांड में केवल एक ही सत्य है, और वह है ब्रह्म या परमात्मा।

अद्वैत वेदांत के प्रमुख सिद्धांत

  • अद्वैत: इस सिद्धांत का मूल आधार है कि ब्रह्मांड में केवल एक ही सत्य है, और वह है ब्रह्म।
  • ब्रह्म: ब्रह्म सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। यह सृष्टि, पालन और संहार का कारण है।
  • आत्मा: प्रत्येक जीव की आत्मा ब्रह्म का ही अंश है।
  • माया: माया एक भ्रम है जो हमें ब्रह्म और आत्मा के बीच का भेद दिखाती है।
  • ज्ञान: ज्ञान के माध्यम से ही हम इस भ्रम को तोड़कर ब्रह्म के साथ एकात्मता स्थापित कर सकते हैं।

अद्वैत वेदांत का महत्व

  • आध्यात्मिक विकास: अद्वैत वेदांत आध्यात्मिक विकास का एक मार्ग प्रदान करता है।
  • मोक्ष: इसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करना है।
  • जीवन दर्शन: यह जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने में मदद करता है।
  • समाज में योगदान: यह व्यक्ति को समाज के प्रति अधिक जागरूक और जिम्मेदार बनाता है।

अद्वैत वेदांत के संस्थापक

आदि शंकराचार्य को अद्वैत वेदांत के संस्थापक माना जाता है। उन्होंने वेदांत दर्शन को सरल भाषा में समझाया और इसे भारत के विभिन्न भागों में फैलाया।

अद्वैत वेदांत और दैनिक जीवन

अद्वैत वेदांत का दैनिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह हमें सिखाता है कि हम सभी एक हैं और हमें सभी जीवों के प्रति करुणा और सहानुभूति रखनी चाहिए। यह हमें भौतिक सुखों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है।

अद्वैत वेदांत एक गहरा और व्यापक दर्शन है। इसे पूरी तरह समझने के लिए गहन अध्ययन और आध्यात्मिक साधना की आवश्यकता होती है।

अद्वैत वेदांत, वेदान्त की एक शाखा है. यह हिंदू धर्म के उन स्कूलों में से एक है, जो उपनिषदों की शिक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करता है. अद्वैत वेदांत के बारे में कुछ खास बातेंः

अद्वैत वेदांत के संस्थापक आदि शंकराचार्य हैं. उन्हें शांकराद्वैत भी कहा जाता है।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, संसार में सिर्फ़ ब्रह्म ही सत्य है और जगत मिथ्या है।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, जीव और ब्रह्म अलग-अलग नहीं हैं. जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, ब्रह्म सभी वस्तुओं और अनुभवों के पीछे अंतर्निहित मूलभूत वास्तविकता है।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, ब्रह्म को शुद्ध अस्तित्व, शुद्ध चेतना, और शुद्ध आनंद के रूप में समझा गया है।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, सभी प्राणियों को एक ही दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
अद्वैत वेदांत के मुताबिक, अद्वैत भाव में मेरा-तेरा का कोई मतलब नहीं होता।

Advaita Vedanta is a non-dualistic school of Hindu philosophy and spiritual thought that emphasizes the idea of a single, unchanging reality, often described as “Brahman.” In Advaita, “Advaita” means “non-dual” or “not two,” while “Vedanta” refers to the “end of the Vedas,” the ancient Indian scriptures. Founded by the philosopher Adi Shankaracharya in the 8th century CE, Advaita Vedanta teaches that the ultimate reality, Brahman, is the only true existence, and that the apparent multiplicity of the world, including the individual self, is illusory (known as “maya”).

Core Concepts of Advaita Vedanta

  1. Brahma as the Only Reality:
    • Advaita Vedanta holds that there is one absolute, infinite reality called Brahma. Brahma is beyond name and form, beyond time, space, and causation, and is pure existence, consciousness, and bliss (known as “Sat-Chit-Ananda”).
    • This reality is impersonal, formless, and without attributes (Nirguna Brahma). Any descriptions or concepts applied to it are considered ultimately inadequate because Brahma transcends human understanding.
  2. Atman as the True Self:
    • According to Advaita, the individual soul or self, called “Atman,” is not separate from Brahman. The Upanishadic phrase Tat Tvam Asi (“That Thou Art”) implies that one’s true self, the Atman, is identical to Brahman.
    • The apparent individual self (ego or “jiva”) is a result of ignorance (avidya) and misidentification with the body and mind. In reality, there is no difference between the individual self and the universal self (Brahman).
  3. Maya and the Illusory Nature of the World:
    • “Maya” is the cosmic illusion that makes the world appear as a separate, diverse reality. Maya is the force that causes Brahman to appear as the manifold universe and leads individuals to identify with their bodies, minds, and experiences.
    • The world is not entirely unreal; it is described as having a “relative” reality, comparable to a dream that seems real while it lasts but dissolves upon awakening.
  4. Liberation (Moksha) and Knowledge (Jnana):
    • The goal of Advaita Vedanta is to attain liberation (moksha), which is the realization of one’s true nature as Brahman.
    • Liberation is achieved through “Jnana” (knowledge or self-realization). This knowledge is not intellectual but experiential — an awakening to the unity of Atman and Brahman.
    • This knowledge dispels ignorance (avidya), much like light dispels darkness, revealing the oneness of all existence.

Key Practices and Methods in Advaita Vedanta

  1. Self-Inquiry (Atma-Vichara):
    • Advaita Vedanta encourages a practice of self-inquiry, famously expressed in the question “Who am I?” This questioning helps individuals break down identification with the body, mind, and ego, directing focus inward to realize the Atman as Brahman.
  2. Renunciation and Detachment:
    • Advaita suggests renouncing attachment to material things and identifying less with egoistic pursuits. This doesn’t necessarily mean withdrawing from life but instead developing detachment and a sense of inner freedom.
  3. Discrimination (Viveka) and Dispassion (Vairagya):
    • Practitioners are taught to discriminate between the real (Brahman) and the unreal (the world of appearances). This develops clarity and helps cultivate detachment from sensory experiences.
  4. Meditation and Contemplation:
    • Meditation helps to quiet the mind, allowing practitioners to experience stillness and a sense of unity, which aids in realizing the Atman as Brahman.

Influence of Advaita Vedanta

Advaita Vedanta has had a profound influence on Hindu philosophy, spirituality, and Indian culture as a whole. Its ideas are foundational in many modern spiritual teachings, both in India and the West. Thinkers like Ramana Maharshi and Swami Vivekananda further popularized its concepts, contributing to its enduring presence.

Through its vision of unity, Advaita Vedanta offers a philosophical framework for understanding interconnectedness, timelessness, and the idea that the divine resides within all beings, emphasizing the realization of one’s true self as a path to liberation.

Advaita Vedanta, also known as non-dualism, is a school of Hindu philosophy that emphasizes the oneness of all existence. It teaches that the individual self (atman) is ultimately identical to the universal self (Brahman), and that the apparent differences between them are merely an illusion (maya).

Key concepts of Advaita Vedanta:

Non-duality (Advaita): This is the core concept of Advaita Vedanta, which states that there is no ultimate distinction between the individual self and the universal self.

Brahman: Brahman is the ultimate reality, the absolute truth, and the source of all existence. It is infinite, eternal, and unchanging.

Atman: Atman is the individual soul or self. It is the essence of each individual being and is ultimately identical to Brahman.

Maya: Maya is the cosmic illusion that creates the appearance of a separate individual self and a separate world. It is not real in the ultimate sense, but it is real enough from the perspective of the individual self.

The goal of Advaita Vedanta:

The ultimate goal of Advaita Vedanta is to realize the non-dual nature of reality and to attain liberation (moksha) from the cycle of birth and death. This is achieved through self-inquiry (atma-vichara) and the realization of one’s true identity as Brahman.

Famous Advaita Vedanta philosophers:

Adi Shankara: Adi Shankara (788-820 CE) was the most influential proponent of Advaita Vedanta. He wrote numerous commentaries on the Upanishads, Brahma Sutras, and Bhagavad Gita, and established the Advaita tradition.

Ramana Maharshi: Ramana Maharshi (1879-1950) was a modern-day sage who taught Advaita Vedanta through self-inquiry. He emphasized the importance of direct realization of one’s true nature as Brahman.

Advaita Vedanta is a Hindu school of philosophy that focuses on the oneness of the individual soul and the ultimate reality, or Brahman. It’s also known as non-dualism. Here are some key ideas of Advaita Vedanta: Non-duality Advaita Vedanta views the individual soul and Brahman as one and the same. Maya Advaita Vedanta teaches that the world’s perceived differences and dualities are projections onto maya, the illusory world. Moksha Advaita Vedanta teaches that liberation from suffering and rebirth, or moksha, is achieved by recognizing the illusoriness of the phenomenal world. Swans In Advaita Vedanta, swans represent an enlightened soul that is untouched by maya. The most famous Advaita Vedanta philosopher was Adi Shankara, who lived in India more than a thousand years ago. Some other important teachers of Advaita include Swami Vivekananda, Ramana Maharshi, and Rupert Spira.

Advaita Vedanta in modern times:

Advaita Vedanta continues to be a popular and influential philosophy in India and around the world. It has been adopted by many people as a path to spiritual enlightenment and self-realization.

Advaita Vedanta is a prominent school of Hindu philosophy that emphasizes non-dualism, asserting that the individual self (Atman) is fundamentally identical to the ultimate reality (Brahman). The term “Advaita” translates to “not two,” reflecting its core belief in the oneness of existence, contrasting with dualistic views that see a separation between the divine and the individual.

Advaita Vedanta emerged as a distinct philosophical tradition around the 8th century CE, primarily through the teachings of Adi Shankaracharya, a key figure who consolidated its doctrines. Shankara’s commentaries on foundational texts such as the Upanishads, the Bhagavad Gita, and the Brahma Sutras laid the groundwork for Advaita thought. He argued that these texts reveal that Atman and Brahman are not separate but are one and the same.

Core Philosophical Tenets

Non-Dualism
The essence of Advaita Vedanta is its non-dualistic perspective. It posits that all distinctions we perceive in the world are ultimately illusory (Maya). This illusion leads to a false sense of separateness from Brahman, which is viewed as the ultimate reality—eternal, unchanging, and beyond all forms.

Key Concepts

  • Atman: The individual self or soul.
  • Brahman: The absolute reality or universal consciousness.
  • Maya: The illusion that creates the perception of duality and separateness.
  • Moksha: Liberation from the cycle of birth and rebirth (samsara), achieved through self-realization and knowledge of one’s true nature as Brahman.

Path to Liberation

Advaita Vedanta teaches that liberation (moksha) can be attained through Jnana Yoga, or the path of knowledge, which involves deep inquiry into one’s true nature. This process includes:

  • Sravana: Listening to teachings.
  • Manana: Reflecting on those teachings.
  • Nididhyasana: Meditative contemplation on one’s identity as Atman-Brahman.

Shankara emphasized that through this disciplined approach, individuals can overcome ignorance (avidya) and realize their inherent unity with Brahman.

Advaita Vedanta remains influential in contemporary spiritual discourse, offering profound insights into the nature of reality and consciousness. Its teachings encourage seekers to transcend illusions of separateness and recognize their true essence as part of an indivisible whole. This philosophy not only shapes Hindu thought but also resonates with various spiritual traditions worldwide.

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